छत्तीसगढ़ राज्य में उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य की सामान्य अध्ययन

 

नरेश कुमार1, टेकेश्वरी2

1अतिथि व्याख्याता, पं. जवाहर लाल नेहरू कला एवं विज्ञान महाविद्यालय, बेमेतरा, जिला - बेमेतरा (छ.ग.), भारत।

2अतिथि व्याख्याता, नवीन शासकीय महाविद्यालय, दाढ़ी, जिला - बेमेतरा (छ.ग.), भारत।

*Corresponding Author E-mail: nareshkumarpatel906@gmail.com, tekeshwari.bmt@gmail.com

 

ABSTRACT:

प्रस्तुत शोध पत्र छत्तीसगढ़ राज्य में उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य की सामान्य अध्ययन पर आधारित है। उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य सन् 2019-20 से 2024-25 तक दर्शायी गई हैं और यह द्वितीय समंको पर आधारित है। अध्ययन में वनोत्पाद के अंतर्गत ईमरती काष्ठ, जलाऊ लकड़ी, व्यापारिक बांस एवं औद्योगिक बांस को सम्मलित किया गया है। लघु वनोपज सहकारी संघ राज्य में वनांचलो के निवासियो द्वारा संग्रहीत राष्ट्रीयकृत एवं अंतर्राष्ट्रीयकृत वनोत्पादों को उचित मूल्य पर क्रय करता है। जिससे वनों में निवास करने वाले आदिवासियों को जीविकोपार्जन का अत्यंत महत्वपूर्ण आधार प्राप्त होता है। जबकि पूर्व में स्थानीय व्यापारियों के द्वारा न्यूनतम मूल्य पर अथवा न्यूनतम आवष्यकताओं के पूर्ति मात्र के बदले लकड़ी को खरीद लिया जाता था। वर्तमान मे सरकार द्वारा उचित मूल्य देने पर यहां के निवासियों की न बल्कि राज्य की आय में बढ़ोतरी में सहायक सिद्ध हुआ है। अतः यहाँ के निवासियों की जीवनस्तर में सकारात्मक रूप से आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में सुधार हुआ है।

 

KEYWORDS: लघु वनोपज संघ, ईमारती लकड़ी, व्यापारिक बांस, औद्योगिक बांस, राष्ट्रीयकृत एवं अंतर्राष्ट्रीयकृत वनोत्पाद, आदिवासी, आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र, जीवनस्तर इत्यादि।

 

 


INTRODUCTION:

छत्तीसगढ़ राज्य के लगभग 50 प्रतिशत तक की जनसंख्या ग्रामीण वनों की सीमा से 5 किलोमीटर की परिधि के अंतर्गत निवासरत है। यहाँ जो निवासरत जनसंख्या पायी जाती है उसमें अधिकतर आदिवासी जनसंख्या निवास कर रही है। ग्रामीण वनों के अंतर्गत जीवन-यापन कर रही आदिवासी समुदाय मुख्य रूप से आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं जो कि आपकी जीवकोपार्जन हेतु मुख्यतः वनों पर निर्भर है इसके अलावा बड़ी संख्या में गैर-आदिवासी भूमिहीन एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े समुदाय भी वनात्पाद पर आश्रित है। वानिकी कार्यों से प्रतिवर्ष लगभग सात करोड़ मानव दिवस रोजगार के अवसर प्राप्त होते है। वनों से ग्रामीण को लगभग 2000 करोड़ रूपए का लघु वनोपज एवं अन्य विस्तार सुविधाएं प्राप्त होती है। इस प्रकार छत्तीसगढ़ में संवहनीय एवं सर्वांगीण विकास परिदृष्य में वनों का विषिष्ट स्थान है। राज्य के लगभग 30 प्रतिषत क्षेत्र का घनत्व 0.4 घनत्व क्षेत्र से भी कम है तथा इन्हे बिगड़े वनों की श्रेणी में रखा गया है यदि इन वनों का सुधार किया जाय तो यहाँ की विकास में योगदान की भागीदारी में बढ़ोतरी संभव होगी। इन क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाने हेतु वनों की सुधार प्रतिवर्ष किया जाने लगा है। इसके अंतर्गत जिन क्षेत्रों में पर्याप्त जड़ भण्डार होता है वहाँ ठूंठ कटाई का कार्य कराया जाकर कापिस शूटस से नये पौधों का निर्माण किया जाता है एवं कम जड़ भण्डार वाले क्षेत्रों में रिक्त स्थानों पर वृक्षारोपण का कार्य किया जाता है। छत्तीसगढ़ की सर्वांगीण विकास के लिए लघु वनोपज के अंतर्गत ईमारती लकड़ी, बांस एवं जलाऊ लकड़ी का विदोहन समावेषी विकास को ध्यान में रखते हुए उत्पादन करने की आवष्यकता है जिससे राज्य का आर्थिक पक्ष सुदृढ़ होगा।

 

1. अध्ययन के उद्देष्य:-

·      छत्तीसगढ़ राज्य में वनों से उत्पादित वनोपज की मात्रा का अध्ययन करना।

·      छत्तीसगढ़ राज्य में वनों से उत्पादित वनोपज की मूल्य का अध्ययन करना।

·      छत्तीसगढ़ राज्य में वनोत्पादित लकड़ियों के योगदान का अध्ययन करना।

 

2. शोध परिकल्पनाएं:-

·      राज्य में वनोत्पादित ईमारती काष्ठ एवं जलाऊ लकड़ी के मात्रा एवं मूल्य में सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

·      राज्य में वनोत्पादित व्यापारिक बांस एवं औद्योगिक बांस की मात्रा एवं मूल्य में नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

 

3. छत्तीसगढ़ राज्य में उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य का स्वरूप:-

छत्तीसगढ़ राज्य में उत्पादन होने वाली वनोत्पाद की मात्रा एवं मूल्य के अंतर्गत ईमारती काष्ठ, जलाऊ लकड़ी एवं बांस की व्यापारिक एवं औद्योगिक रूपों का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है जो कि तालिका 1 से लेकर 6 तक प्रदर्षित है। राज्य की आर्थिक विकास से एक सुदृढ़ रूप प्रदान करने हेतु राज्य में वनों की प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ को भी ध्यान देने की आवष्यकता है। अतः राज्य में वनोत्पादन का विवरण निम्नवत् हैः-

 

तालिका क्रमांक - 1: उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य 2019-2020

क्र.

वन उत्पादन का नाम

ईकाई

2018-2019

2019-2020

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

1.

ईमारती काष्ठ

घ. मी.

20428

4071

24528

6890

2.

जलाऊ लकड़ी

ज. चट्ठा

11798

287

14706

468

3.

व्यापारिक बांस

नो. टन

837

172

876

174

4.

औद्योगिक बांस

नो. टन

684

27

718

86

स्रोतः आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय छत्तीसगढ़, आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20.

 

तालिका क्रमांक 1 में स्पष्ट है कि सन् 2018-19 की अपेक्षा 2019-20 में ईमारती काष्ठ का उत्पादन 20428 है जो बढ़कर 24528 हो गई है। क्रमशः जलाऊ लकड़ी 11798 है जो बढ़कर 14706 हो गई है तथा व्यापारिक बांस 837 थी जो 876 हुआ एवं औद्योगिक बांस 684 थी जो 718 हो गया। इसका तात्पर्य यह है कि वनों से प्राप्त लाभ में वृद्धि हुई है।

 

तालिका क्रमांक - 2: उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य 2020-2021

क्र.

 

वन उत्पादन का नाम

 

ईकाई

 

2019 - 2020

2020 - 2021

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

1.

ईमारती काष्ठ

घ. मी.

24528

6890

25930

6932

2.

जलाऊ लकड़ी

ज. चट्ठा

14706

468

15602

474

3.

व्यापारिक बांस

नो. टन

876

174

896

189

4.

औद्योगिक बांस

नो. टन

718

86

721

91

स्रोतः आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय छत्तीसगढ़, आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21.

 

उपर्युक्त तालिका क्रमांक 2 में स्पष्ट है कि उत्पादित वनोपज की मात्रा सन् 2019 - 20 की अपेक्षा 2020 - 21 में धनात्मक रूप से वृद्धिमान अवस्था परिदृश्य हो रही है। ईमारती काष्ठ 2019 - 20 में 24528 थी वह बढ़कर 25930 उत्पादन में वृद्धि हुई है। ठीक उसी तरह जलाऊ लकड़ी में 14706 से बढ़कर 15602 एवं व्यापारिक बांस 876 से 896 एवं औद्योगिक बांस 718 से 721 तक हुआ है।

 

तालिका क्रमांक - 3: उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य 2021-2022

क्र.

वन उत्पादन का नाम

ईकाई

2020-2021

2021-2022

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

1.

ईमारती काष्ठ

घ. मी.

25930

6932

27820

7320

2.

जलाऊ लकड़ी

ज. चट्ठा

15602

474

16302

532

3.

व्यापारिक बांस

नो. टन

896

189

909

202

4.

औद्योगिक बांस

नो. टन

721

91

801

103

स्रोतः आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय छत्तीसगढ़, आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22.

 

उपर्युक्त तालिका क्रमांक 3 में स्पष्ट है कि 2020-21 से 2021-22 में वनोपज की मात्रा एवं मूल्य में भी वृद्धिमान पक्ष मजबूत मानी गई है। 2020-21 से 2021-22 में मुख्य रूप से मूल्य को अध्ययन किया गया है जो कि 6932 लाख रूपये केवल ईमारती काष्ठ में थी जो बढ़कर 7320 लाख रूपये हो गई तथा जलाऊ लकड़ी 474 लाख रूपये से बढ़कर 532 लाख रूपये हो गया। अतः निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ राज्य में उत्पादित वनोत्पाद की मात्रा में निरंतर बढ़ोतरी की धनात्मक इकाई वर्षों से राज्य के आर्थिक पक्ष के रूप में निहित रहा है। राज्य की व्यापारिक बांस एवं औद्योगिक बांस का भी राज्य के वनोपज में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

 

तालिका क्रमांक - 4: उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य 2022-2023

क्र.

वन उत्पादन का नाम

ईकाई

2021-2022

2022-2023

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

1.

ईमारती काष्ठ

घ. मी.

27820

7320

29105

7837

2.

जलाऊ लकड़ी

ज. चट्ठा

16302

532

17101

575

3.

व्यापारिक बांस

नो. टन

909

202

989

209

4.

औद्योगिक बांस

नो. टन

801

103

902

107

स्रोतः आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय छत्तीसगढ़, आर्थिक सर्वेक्षण 2022 - 23.

 

उपर्युक्त तालिका क्रमांक 4 में स्पष्ट है कि उत्पादित वनोपज 2021 - 22 से 2022 - 23 तक प्रदर्शित है जिसमें उत्पादन एवं उसकी मूल्य को प्रदर्शित किया गया है जो कि यह स्पष्ट करता है कि जितनी मात्रा में उत्पादन में वृद्धि होनी चाहिए, उनकी अपेक्षा मात्रा एवं उत्पादन के मूल्य में पहले की अपेक्षा बहुत अधिक वृद्धि नहीं हुई है। यह आर्थिक विकास पर अपनी भूमिका पहले की अपेक्षा कम योगदान दे रही है। 

 

तालिका क्रमांक - 5: उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य 2023-2024

क्र.

वन उत्पादन का नाम

ईकाई

2022-2023

2023-2024

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

1.

ईमारती काष्ठ

घ. मी.

29105

7837

30109

8105

2.

जलाऊ लकड़ी

ज. चट्ठा

17101

575

17805

601

3.

व्यापारिक बांस

नो. टन

989

209

997

281

4.

औद्योगिक बांस

नो. टन

902

107

937

137

स्रोतः आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय छत्तीसगढ़, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24.

 

उपर्युक्त तालिका क्रमांक 5 में दर्शित है कि सन् 2023-2024 में पूर्व की अपेक्षा धनात्मक दृष्टिगोचर हो रही है अर्थात् राज्य की वनोपज का आर्थिक विकास में सकारात्मक प्रभाव की ओर अग्रसर हो रही है अर्थात् ईमारती काष्ठ 2022-2023 में 7837 लाख रूपये से बढ़कर 8105 तक पहुंच गया, जो कि पहले की अपेक्षा अधिक मात्रा में वृद्धि हुआ है। इस तरह क्रमशः जलाऊ लकड़ी 575 लाख रूपये से 601 एवं व्यावसायिक एवं औद्योगिक बांस 209 एवं 107 से बढ़कर 281 एवं 137 लाख रूपये हो गया।

 

तालिका क्रमांक - 6: उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य 2024-2025

क्र.

वन उत्पादन का नाम

ईकाई

2023-2024

2024-2025

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

उत्पादन

मूल्य (लाख रू. में)

1.

ईमारती काष्ठ

घ. मी.

30109

8105

30702

8309

2.

जलाऊ लकड़ी

ज. चट्ठा

17805

601

18117

622

3.

व्यापारिक बांस

नो. टन

997

281

1009

297

4.

औद्योगिक बांस

नो. टन

937

137

948

149

स्रोतः आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय छत्तीसगढ़, आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25.

 

उपर्युक्त तालिका क्रमांक 6 में दर्शित है कि वर्ष 2024-2025 में उत्पादित वनोपज की मात्रा एवं मूल्य जो कि ईमारती काष्ठ की मात्रा 30109 है जिसका मूल्य 8105 था जो बढ़कर 30702 व मूल्य 8309 लाख रूपया है। जलाऊ लकड़ी का उत्पादन 17805 जिसका मूल्य 601 लाख रूपये से बढ़कर उत्पादन 18117 व मूल्य 622 लाख रूपये व व्यावसायिक तथा औद्योगिक बांस क्रमशः 997 तथा मूल्य 281 से बढ़कर उत्पादन 1009 व मूल्य 297 लाख रूपये हो गया एवं औद्योगिक बांस उत्पादन 937 से बढ़कर 948 तथा मूल्य 137 लाख रूपये से बढकर 149 लाख रूपये हो गया। 

 

4. निष्कर्ष:-

छत्तीसगढ़ के आदिवासी व्यक्तियों को मूल आधार वनोपज है। अतः कहा जा सकता है कि वनोपज जैसे इमारती काष्ठ, जलाऊ लकड़ी, बांस, गोंद, औषधीय पौधे आदि ग्रामीण क्षेत्रों के जीवन यापन में सहायक होती है अथवा अर्थव्यवस्था का आधार होता है। ग्रामीण जनसंख्या वनोपज को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं और वनों के संरक्षण में सहायता प्रदान करते हैं। वनों का आर्थिक योगदान राज्य की विकास एवं अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सदैव तत्परता पूर्वक अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करती है ताकि देश की अर्थव्यवस्था पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़े एवं जीवन स्तर तथा रहन-सहन पर धनात्मक वृद्धि हो सके। वनोपज जीविका के साधन के रूप में परिवार की आमदनी एवं जीवन की सरल स्वभाव को स्थिर रखने एवं पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन यापन को एक सूत्र में बांधे रखने में भी योगदान देती है जैसे चंदन, बेलपत्र, तुलसी आदि का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व होता है जो परम्पराओं से जुड़ा हुआ होता है। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि राज्य में वनोत्पादित ईमारती काष्ठ एवं जलाऊ लकड़ी के मात्रा एवं मूल्य में वृद्धि हुई है पूर्व में वनों की संरक्षण एवं देखरेख की कमी थी परन्तु बाद में इसका सुधार हुआ, जिसका सकारात्मक प्रभाव हुआ है। अतः शुन्य परिकल्पना स्वीकार होगी एवं वैकल्पिक परिकल्पना अस्वीकार होगी। छत्तीसगढ़ राज्य की व्यापारिक बांस एवं औद्योकिग बांस के उत्पादन एवं मात्रा में भी पहले की अपेक्षा बाद में वृद्धि हुई है। अतः यहाँ शून्य परिकल्पना अस्वीकार होगी एवं वैकल्पिक परिकल्पना स्वीकार होगी। छत्तीसगढ़ राज्य के वनों से उत्पादित वनोपज की मात्रा में वृद्धि एवं आर्थिक विकास को गति देने के लिए वनों पर आधारित उद्योगों का विकास करना आवष्यक होगा।

 

5. संदर्भग्रंथ सूची:-

1.     Bhattacharya, P. Patel. Towards certification of wild medicinal and aromatic plants in four Indian Status. Unasylva. 2008; 230(59):35-40.

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3.     Gupta, M. and Jha, R. Agriculture in Chhattisgarh: A Growth perspective. Indian Journal of Agriculture Economics. 2018; 73(2): 210-225.

4.     Mishra, S. Regional Disparities in Economic Growth: A study of Chhattisgarh. Journal of Development Studies. 2023; 59(1): 89-105.

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6.     Rao, K. Economic Growth in Chhattisgarh: Trends and Prospects. Chhattisgarh Economic Journal. 2021; 18(1): 15-30.

7.     Sharma, N. and Verma, P. Gender and workforce participation in Chhattisgarh: An empirical analysis. Journal of Gender Studies. 2021; 30(3): 345-359.

8.     Shiva and Mathur. Management of Miror forest produce for sustainability. Oxford and IBH Publishing Co. Pvt. New Delhi. 1986: 20-25.

9.     TFRJ. National Workshop on Non-timber forest products Marketing: Issues and Strategies. Tropical Forest Research Institute, Jabalpur. 2011: 20-31.

10.  Verma, S. Tourism Potential in Chhattisgarh: An Under explored Avenue. Tourism Management Perspective. 2020; 30(1): 100-110.

11.  आर्थिक सर्वेक्षण. आर्थिक एवं सांख्यिकी संचालनालय छत्तीसगढ़. इंद्रावती भवन नवा रायपुर, अटल नगर, जिला -रायपुर, छत्तीसगढ़, 2024-2025.

 

 

Received on 16.04.2025      Revised on 03.05.2025

Accepted on 19.05.2025      Published on 05.06.2025

Available online from June 10, 2025

Int. J. of Reviews and Res. in Social Sci. 2025; 13(2):66-70.

DOI: 10.52711/2454-2687.2025.00011

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